उदयपुर.अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू उदयपुर शाख,राजस्थान उर्दू अकादमी और राजस्थान साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में “उर्दू अदब में गैर मुस्लिम हज़रात की खिदमात” विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का 23 से 24 सितंबर तक उदयपुर के आर सी ए कैंपस के प्रसार शिक्षा निदेशालय सभागार में आयोजन किया गया। इस सेमिनार में राजस्थान सहित देश के विभिन्न राज्यों पंजाब,हिमाचल प्रदेश, देहली,उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश,बिहार, महाराष्ट्र व तेलंगाना के उर्दू साहित्यकार,पत्रकार ,कवि, प्रोफेसर्स ओर रिसर्च स्कॉलर्स उपस्थित रहे।
सेमिनार की संयोजक प्रोफेसर सरवत खान ने बताया कि सेमिनार के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता राजस्थान रत्न मशहूर शायर और आलोचक शीन काफ निज़ाम ने की। उदघाटन सत्र के मुख्य अतिथि अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू उदयपुर शाख की सरपरस्त, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. गिरिजा व्यास,साहित्य अकादमी नई दिल्ली में उर्दू परामर्शदात्री समिति के संयोजक प्रख्यात शायर चंद्रभान खयाल रहे। साथ ही विशिष्ट अतिथि आर सी ए यूनिवर्सिटी उदयपुर के पूर्व कुलपति प्रोफेसर उमाशंकर शर्मा व जनार्दनराय नागर विश्वविदयालय उदयपुर के कुलपति प्रोफेसर एस एस सारंगदेवोत उपस्थित रहे। अपने अध्यक्षीय भाषण में शीन काफ निज़ाम ने कहा कि सेमिनार का विषय देखकर थोड़ा चिंतन करने की आवश्यकता है कि कैसे हम इस भेद को मिटा सकते हैं। गिरिजा व्यास ने कहा कि उर्दू किसी एक मज़हब की ज़बान नही है, बल्कि यह तो हर हिन्दुस्तानी की ज़बान है । प्रोफेसर उमाशंकर ने कहा कि उर्दू बहुत ही मीठी ज़बान है। इसकी प्रोन्नति की हम सब को मिलकर हर संभव कोशिश करनी चाहिए। चंद्रभान ख्याल ने कहा कि उर्दू अदब में इब्तदा से लेकर आज तक हर दौर में मुस्लिमों के साथ साथ गैर मुस्लिम शायरों व अदीबों ने अपना अहम किरदार निभाया है। उद्घाटन सत्र में उर्दू अकादमी के अध्यक्ष डॉ. हुसैन रज़ा खां ने कहा कि अकादमी इस तरह के सेमिनार करवाने के लिए हमेशा तैयार हैं।
दो दिवसीय सेमिनार में आयोजित पत्र वाचन के चार सत्रों में देश भर के साहित्यकारों, कवियों , प्रोफेसर्स ओर स्कॉलर्स ने उन गैर मुस्लिम हज़रात की शख्सियत पर पत्र वचन किया जिन्होंने उर्दू अदब में अपनी खिदमात अंजाम दी हैं। जोधपुर के शीन काफ निज़ाम ने ‘कालिदास गुप्ता रज़ा’, नई दिल्ली के चन्द्रभान खयाल ने ‘गोपीचंद नारंग’, लुधियाना के अज़ीज़ परिहार ने ‘पंडित जोश मल्सियानी’, जोधपुर के एम आई ज़ाहिर ने ‘मुंशी नवलकिशोर’, चंडीगड़ की रेणु बहल ने ‘कश्मीरीलाल ज़ाकिर’, पटना के डॉ. सफदर इमाम क़ादरी ने ‘बिहार के गैर मुस्लिम उर्दू कलमकार’, हैदराबाद की आमना तहसीन ने ‘ दक्कन के गैर मुस्लिम उर्दू क़लमकार’, पटना की आशा प्रभात ने ‘ रेणु बहल की फ़िक्शन निगारी’, मुंबई की दीप्ति मिश्रा ने ‘फ़िराक़ गोरखपुरी’, दिल्ली के मोईन शादाब ने ‘आनंदनारायण मुल्ला’, दिल्ली के प्रोफेसर शहज़ाद अंजुम ने ‘उर्दू में ग़ैर मुस्लिम हज़रात की खिदमात का समग्र जायज़ा’,पटना के जैनुल आबेदीन ने ‘गुलज़ार जुत्शी’, कानपुर के जगदंबा दुबे ने ‘पंडित रतननाथ सरशार’, टोंक के सौलत अली खां ने ‘ आज़ादी से पहले राजस्थान के गैर मुस्लिम उर्दू अदबा’, चूरू के एहतिशाम अब्बास हैदरी ने ‘आज़ादी के बाद राजस्थान के गैर मुस्लिम उर्दू अदबा’, सवाई माधोपुर के डॉ. शाहिद ज़ैदी ने ‘राजेंद्रसिंह बेदी’, डॉ. मोहम्मद शाकिर ने’ जोगिंदरपाल’, जयपुर की मसर्रतजहां ने ‘शांता बाई’, दिल्ली की नाज़िया ऐजाज़ ने ‘ रतनसिंह’, उदयपुर की आफरीन शब्बर ने ‘ पंडित दयाशंकर नसीम’, श्रीनगर की डॉ शबनम शमशाद ने ‘शीन काफ निज़ाम’ और उदयपुर की शाइस्ता बानो ने ‘ आशा प्रभात’ विषयों पर अपने पत्रों का वाचन किया।
सेमिनार के अंतिम दिन समापन समारोह की सदारत शीन काफ निज़ाम ने की। मुख्य अतिथि राजस्थान साहित्य अकादमी के चेयरमैन डॉ. दुलाराम सहारण, विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध कवि किशन दाधीच और लोक कला मंडल के निदेशक लईक हुसैन उपस्थित रहे। सहारण ने कहा कि हमें साहित्य के क्षेत्र में समग्रता लाने की बहुत जरूरत है। उन्होंने कहा कि उर्दू खालिस हिंदुस्तानी ज़बान है, जो यही पैदा हुई और पली बढ़ी इस ज़बान से हम सब को फायदा लेना चाहिए और जो निम्न वर्ग के लेखक हैं उन्हें भी साहित्य अकादमियों की ओर से समय समय और प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।सहारण ने कहा कि इस तरह के आयोजन होते रहने चाहिए। राजस्थान साहित्य अकादमिक इनके लिए हमेशा तैयार है। किशन दाधीच ने कहा कि भाषाएं अलग अलग नही हो सकतीं। सब…