सुप्रीम कोर्ट ने इबादतगाहों (पूजास्थलों) के विरुद्ध नए मामले दायर करने पर रोक लगाई,

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लंबित मामलों में अंतिम फैसले देने और सर्वे के आदेश जारी करने पर प्रतिबंध

नई दिल्ली, 12 दिसंबर: जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी अदालतों को आदेश दिया है कि जब तक अगला आदेश न हो, किसी भी इबादतगाह (मस्जिद, मंदिर, दरगाह) के खिलाफ नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि लंबित मामलों (जैसे ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा शाही ईदगाह, संभल जामा मस्जिद) में कोई सर्वे या ऐसा अंतरिम आदेश नहीं दिया जाएगा, जिससे पूजा स्थल की स्थिति प्रभावित हो।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह आदेश दिया। जमीअत उलमा-ए-हिंद की ओर से एडवोकेट दुष्यंत दवे और अन्य वकील कोर्ट में उपस्थित थे। दवे ने सभी लंबित मामलों को रद्द करने की मांग की, लेकिन कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया। न्यायालय ने केंद्र (संघीय सरकार) को निर्देश दिया कि वह पूजा स्थल संरक्षण से संबंधित कानून पर दायर याचिकाओं के खिलाफ चार हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करे। अदालत ने यह भी आदेश दिया कि केंद्र के जवाबी हलफनामे की (counter affidavit) एक प्रति एक वेबसाइट पर अपलोड की जाए ताकि कोई भी इसे डाउनलोड कर सके। यह सुनवाई 1991 के पूजा स्थल अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के संदर्भ में हुई। इस कानून का मकसद 15 अगस्त 1947 को पूजा स्थलों की जो स्थिति थी, उसको बरकरार रखना और उसमें किसी भी तरह के बदलाव को रोकना है।

इस मामले की मूल याचिका अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ के शीर्षक से 2020 में दायर की गई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2021 में केंद्र को नोटिस जारी किया था। बाद में, इस अधिनियम को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाएं भी दायर की गईं। आज की सुनवाई में, जमीअत उलमा-ए-हिंद की ओर से भी एक रिट याचिका दर्ज की गई, जिसमें 1991 के अधिनियम को पूर्ण रूप से लागू करने की मांग की गई थी। इसके अलावा कई राजनीतिक ने इस कानून की रक्षा के लिए हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की हैं, जिनमें जिसमें सीपीआई (एम), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, डीएमके, राजद सांसद मनोज झा और एनसीपी (शरद पवार) के सांसद जीतेन्द्र ओहाड़ शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने न्यायालय द्वारा कई बार विस्तार दिए जाने के बावजूद अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। यह कानून उस समय सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गया जब उत्तर प्रदेश के संभल जामा मस्जिद के सर्वे के बाद पुलिस हिंसा की घटनाएं सामने आईं। इसके बाद मामले पर सार्वजनिक तौर पर जबरदस्त बहस और चर्चा हुई और न्यायालय ने इस मामले में सख्त निर्देश जारी किए।आज अदालत की कार्यवाही पर याचिका दायर करने वाले जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने कहा कि हमारा उद्देश्य इस देश में शांति-व्यवस्था की रक्षा करना है, हमें अतीत में झांकने से ज्यादा इस देश के भविष्य के निर्माण और इसके विकास में सभी वर्ग के लोगों के समान प्रतिनिधित्व पर पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। मौलाना मदनी ने कहा कि मस्जिद-मस्जिद मंदिर तलाश करने वाले इस देश की एकता और भाइचारे के दुश्मन हैं। जमीअत उलमा-ए-हिंद ने हमेशा सांप्रदायिकता का विरोध किया है और उसने उन दरवाजों को बंद करने के लिए भी सत्तासीन लोगों का बार-बार ध्यान आकर्षत किया है जिन रास्तों पर सांप्रदायिकता का सांप फन मारे खड़ा है। यह जमीअत उलमा-ए-हिंद का ही प्रयास था कि 1991 में यह एक्ट बना और ईश्वर ने चाहा तो हमारे प्रयासों से इस एक्ट का क्रियान्वयन भी होगा।

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